
सतपाल ख्याल ग़ज़ल विधा को समर्पित हैं। आप निरंतर पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित होते रहते हैं। आप सहित्य शिल्पी पर ग़ज़ल शिल्प और संरचना स्तंभ से भी जुडे हुए हैं तथा ग़ज़ल पर केन्द्रित एक ब्लाग आज की गज़ल का संचालन भी कर रहे हैं। आपका एक ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन है। अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
बात करता है कि बस जी ही जला देता है
बात होती है इशारों में जो रूठे है कभी उसका
हम पर यूँ बिगड़ना भी मजा देता है
बात करेने का सलीक़ा भी तो कुछ होता है
वो हरिक बात पे नशतर-सा चुभा देता है
हमने दी है जो कभी उसको खुशी की अर्ज़ी
पुर्जा-पुर्जा वो हवाओं में उड़ा देता है
है अँधेरों में चराग़ों सा वजूद उसका "ख़याल"
राह भटका हो कोई राह दिखा देता है
3 टिप्पणियाँ
गहराइयों को छूती हुईं गजल ...सतपाल जी को बधाई !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । बात की गहराइ के कारण 'बात' की पुनरावृति भी सहज ही लग रही है ।
जवाब देंहटाएंहम भी ग़ज़ल भेज सकते है क्या महोदय आपको हम भी छोटे से कलमकार है!
जवाब देंहटाएंतलक्खुस आकिब जावेद है हमारा.........
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