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मैंने पढी किताब में ‘सरिता शर्मा’ का 'दि गर्ल' पर विमर्श

बार गर्ल्स के जीवन पर लिखे नॉनफिक्शन ‘ब्यूटीफुल थिंग’ से विख्यात होने वाली पत्रकार और लेखिका सोनिया फेलेरो का पहला उपन्यास‘दि गर्ल’ है। इसमें गोवा की पृष्ठभूमि में एक ऐसी लड़की की मनोवैज्ञानिक त्रासदी है जो परिवार में एक के बाद एक सदस्य की मौत देखती है और दो प्रेमियों- ल्यूक और साईमन के साथ प्रेम सम्बन्ध असफल हो जाने पर अकेले रहने के लिए अभिशप्त है। पुस्तक की शुरूआत गोवा के अजुल गांव में लड़की के समुद्र  में डूब कर मरने से होती है। दोनों प्रेमी यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि लड़की ने किसके कारण आत्महत्या की। जब एक प्रेमी के हाथ लड़की की डायरी आती है तो वह उसकी आत्महत्या तक के  घटनाक्रम को जोड़ने की कोशिश करता है। डायरी के साथ पाठक लड़की की एकांत और उदास दुनिया में दाखिल हो जाता है जिसकी सब उम्मीदें खत्म हो चुकी हैं।

‘दि गर्ल’ की  सबसे बड़ी खूबी काव्यात्मकता शैली है जिसमें लड़की के अवसाद और शापित वातावरण का बहुत सुन्दर चित्रण किया गया है। सोनिया फेलेरो  का बचपन गोवा में बीता है और उसने वहाँ के लोगों के जीवन को बहुत करीब से देखा है। तभी वह गोवा के अकेलेपन और अवसादपूर्ण चेहरे को दिखाकर वहाँ के लोगों की बेफिक्री और मौज मस्ती वाली घिसी पिटी छवि को तोड़ पाई  है। अजुल ‘मृतकों का गांव’ है जहाँ हर व्यक्ति ने इतने  कष्ट भोगे हैं कि वे अब मौत और उदासी के अभ्यस्त  हो गये हैं। अनेक बिम्बों और रूपकों का इस्तेमाल किया गया है. ‘उबाऊ पादरी बाईबल से इतनी देर तक पढते हैं कि घड़ी में बोलने वाली कोयल सोने चली जाती है।’ मौत का साया पूरे उपन्यास पर मंडराता रहता है। माँ की मौत पर लड़की कहती है. ‘माँ मर गयी है और अब मैं मर रही हूँ।‘ लड़की रयू को छोड़कर अजुल में रहने लगती है, मगर  नए माहौल में भी उसे  हताशा और दुःख से निजात नहीं मिलती है। अवसाद और मानसिक रूप से अस्थिर लड़की का अंत  मौत में होता है जो  उसके एकाकी जीवन, अलगाव और दर्दनाक यादों से एकमात्र पलायन है। वह मर कर  माँ के प्यार की सुरक्षा में वापस अपने घर जाना चाहती है। लड़की ने डायरी में समुद्र में डूबने से होने वाली अपनी आसन्न मृत्यु का ग्राफिक चित्रण किया है।

इस उपन्यास में यह कमी खलती है कि सवा सौ पन्नों की किताब में  माहौल और मनोदशा के विस्तृत वर्णन होने के बावजूद  कहानी तथा पात्रों को विकसित करने  पर  ध्यान नहीं दिया गया है। दोनों प्रेमी आभासी प्रतीत होते हैं जो लड़की के दुःख का कारण होने के बावजूद घटनाक्रम में बहुत कम भाग लेते हैं। अधिकांश कहानी फ्लेशबैक में चलती है। लड़की के बारे में  पृष्ठभूमि में  उसके  टूटे हुए परिवार, अकेले  उबाऊ जीवन और अलग अलग स्वभाव के दो  पुरुषों के प्रति आकर्षण को दर्शाया गया है। उसके चरित्र को खूबसूरती से उजागर किया गया है जिसमें वह शांत भाव से दुःख सहती है और अंत में हर तरफ से निराश हो जाने के बाद गरिमामाय ढंग से मौत  को चुन लेती है।  यह उपन्यास मार्केज के ‘क्रोनिकल ऑफ अ डेथ फोरटोल्ड’ की याद दिलाता है हालाँकि इसमें पात्र उतने  ज्यादा नहीं हैं और माहौल भी जीवंत नहीं है। पुस्तक में अतीत और वर्तमान  और अलग अलग कथावाचाकों  की आवाजाही चलती रहती है। कहीं सीधा कथाप्रवाह है तो कहीं लड़की की डायरी का इस्तेमाल किया गया है। बहुत सधी हुई  शैली में लिखे गये इस उपन्यास में मानव मन की दुखद नियति को समझने की कोशिश की गयी है। उपन्यास में लड़की को कोई नाम नहीं दिया गया है जिससे वह हर व्यक्ति के अकेलेपन और पीड़ा को प्रतिबिंबित करती  है। यह उपन्यास भाषा और कथ्य की मौलिकता के चलते भारतीय लेखकों द्वारा अंग्रेजी में बड़ी संख्या में लिखी जा रही किताबों में उल्लेखनीय है।

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2 टिप्पणियाँ

  1. सरिता जी आपने समीक्षा काफ़ी विस्तृत व अच्छी लिखी है। पढ़कर लगा लगभग जैसे पूरी कहानी से वाक़िफ़ हो गए हैं। आपकी समीक्षा पढ़कर किताब को पढ़ने का मन बन गया है, कितना मार्क्वेज़ के उपन्यास "क्रौनिकल ऑफ़ अ डेथ फ़ोरटोल्ड" के पात्रों से समानता है, विशेषकर यह जानने के लिए।
    शुभकामनाएं

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  2. ‘दि गर्ल’ की सबसे बड़ी खूबी यानि काव्यात्मकता शैली इस समीक्षात्मक आलेख तक पसर आई है । उत्तम समीक्षा वही जो पुस्तक पढने की तीव्र आकांक्षा जगा दे । ऐसा ही इस समीक्षा को पढने के बाद भी महसूस हो रहा है ।

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