उड़ती थी ग़र्द चहुँ-दिश
था आसमान मैला
लू के थपेड़े लगते
जग झुलसा जा रहा था
बादल का एक टुकड़ा
प्यासा था जैसे शायद
पानी ही खोजने को
कहीं दूर जा रहा था
बैठा था अपने घर मैं
था देखता सड़क को
तभी दिख पड़ा मुझे वो
सम्मुख जो आ रहा था
गर्मी की दोपहर में
रिक्शे को खींचता था
भट्ठी में धूप की ज्यों
खुद को गला रहा था
सारे बदन से रिसकर
बहता था यूँ पसीना
बारिश में आग की वो
जैसे नहा रहा था
पलभर को उसने रुककर
अपना पसीना पोंछा
कोई गीत धीमे सुर में
शायद वो गा रहा था
एक बार ही मिलीं थीं
मुझसे तो उसकी नजरें
फिर चल दिया वो मुड़कर
जिस राह जा रहा था
आये थे याद मुझको
वो 'कर्मवीर' फिर से
इसका भी कर्म शायद
इसका खुदा रहा था
था आसमान मैला
लू के थपेड़े लगते
जग झुलसा जा रहा था
बादल का एक टुकड़ा
प्यासा था जैसे शायद
पानी ही खोजने को
कहीं दूर जा रहा था
बैठा था अपने घर मैं
था देखता सड़क को
तभी दिख पड़ा मुझे वो
सम्मुख जो आ रहा था
गर्मी की दोपहर में
रिक्शे को खींचता था
भट्ठी में धूप की ज्यों
खुद को गला रहा था
सारे बदन से रिसकर
बहता था यूँ पसीना
बारिश में आग की वो
जैसे नहा रहा था
पलभर को उसने रुककर
अपना पसीना पोंछा
कोई गीत धीमे सुर में
शायद वो गा रहा था
एक बार ही मिलीं थीं
मुझसे तो उसकी नजरें
फिर चल दिया वो मुड़कर
जिस राह जा रहा था
आये थे याद मुझको
वो 'कर्मवीर' फिर से
इसका भी कर्म शायद
इसका खुदा रहा था
2 टिप्पणियाँ
SAHAJ BHAVABHIVYAKTI KE LIYE AJAY JEE KO BADHAEE
जवाब देंहटाएंAUR SHUBH KAMNA .
manbahavan,sunder rachna
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.