बहर की यदि बात करें तो फ़ारसी के ये भारी भरकम शब्द जैसे फ़ाइलातुन, मसतफ़ाइलुन या तमाम बहरों के नाम आप को याद करने की ज़रूरत नही है। ये सब उबाऊ है इसे दिलचस्प बनाने की कोशिश करनी है। आप समझें कि संगीतकार जैसे गीतकार को एक धुन दे देता है कि इस पर गीत लिखो.. गीतकार उस धुन को बार-बार गुनगुनाता है और अपने शब्द उस मीटर / धुन / ताल में फिट कर देता है बस.. गीतकार को संगीत सीखने की ज़रूरत नहीं है उसे तो बस धुन को पकड़ना है। ये तमाम बहरें जिनका हमने ज़िक्र किया ये आप समझें एक किस्म की धुनें हैं। आपने देखा होगा छोटा सा बच्चा टी.वी पर गीत सुनके गुनगुनाना शुरू कर देता है वैसे ही आप भी इन बहरों की लय या ताल कॊ पकड़ें और शुरू हो जाइये। हाँ बस आपको शब्दों का वज़्न करना ज़रूर सीखना है जो आप उदाहरणों से समझ जाएंगे।
हम शब्द को उस आधार पर तोड़ेंगे जिस आधार पर हम उसका उच्चारण करते हैं। शब्द की सबसे छोटी इकाई होती है वर्ण। तो शब्दों को हम वर्णों मे तोड़ेंगे। वर्ण वह ध्वनि हैं जो किसी शब्द को बोलने में एक समय में हमारे मुँह से निकलती है और ध्वनियाँ केवल दो ही तरह की होती हैं या तो लघु (छोटी) या दीर्घ (बड़ी)। अब हम कुछ शब्दों को तोड़कर देखते हैं और समझते हैं, जैसे:
"आकाश"
ये तीन वर्णो से मिलकर बना है.
आ+ का+ श
अब छोटी और बड़ी आवाज़ों के आधार पर या आप कहें कि गुरु और लघु के आधार पर हम इन्हें चिह्नित कर लेंगे. गुरु के लिए "2 " और लघु के लिए " 1" का इस्तेमाल करेंगे.
जैसे:
सि+ता+रों के आ+गे ज+हाँ औ+र भी हैं.
(1+2+2 1+ 2+2 1+2+2 1+ 2+2)
अब हम इस एक-दो के समूहों को अगर ऐसे लिखें.
122 122 122 122
तो अब आगे चलते हैं बहरो की तरफ़. उससे पहले कुछ परिभाषाएँ देख लें जो आगे इस्तेमाल होंगी।
तकतीअ:
वो विधि जिस के द्वारा हम किसी मिसरे या शे'र को अरकानों के तराज़ू मे तौलते हैं, ये विधि तकतीअ कहलाती है। तकतीअ से पता चलता है कि शे'र किस बहर में है या ये बहर से खारिज़ है। सबसे पहले हम बहर का नाम लिख देते हैं।, फिर वो सालिम है या मुज़ाहिफ़ है. मसम्मन ( आठ अरकान ) की है इत्यादि.
अरकान और ज़िहाफ़:
अरकानों के बारे में तो हम जान गए हैं कि आठ अरकान जो बनाये गए जो आगे चलकर बहरों का आधार बने. ये इन आठ अरकानों में कोशिश की गई की तमाम आवाज़ों के संभावित नमूनों को लिया जाए.ज़िहाफ़ इन अरकानों के ही टूटे हुए रूप को कहते हैं जैसे:फ़ाइलातुन(२१२२) से फ़ाइलुन(२१२).
मसम्मन और मुसद्द्स:
लंबाई के लिहाज़ से बहरें दो तरह की होती हैं मसम्मन और मुसद्द्स. जिस बहर के एक मिसरे में चार और शे'र में आठ अरकान हों उसे मसम्मन बहर कहा जाता है और जिनमें एक मिसरे मे तीन शे'र में छ: उन बहरों को मुसद्द्स कहा जाता है. जैसे:
सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
(122 122 122 122)
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं.
(122 122 122 122)
यह आठ अरकान वाली बहर है तो यह मसम्मन बहर है.
मफ़रिद या मफ़रद और मुरक्कब बहरें:
जिस बहर में एक ही रुक्न इस्तेमाल होता है वो मफ़रद और जिनमे दो या अधिक अरकान इस्तेमाल होते हैं वो मुरक्कब कहलातीं हैं जैसे:
सितारों के अगे यहाँ और भी हैं
(122 122 122 122)
ये मफ़रद बहर है क्योंकि सिर्फ फ़ऊलुन ४ बार इस्तेमाल हुआ है.
अगर दो अरकान रिपीट हों तो उस बहर को बहरे-शिकस्ता कहते हैं जैसे:
फ़ाइलातुन फ़ऊलुन फ़ाइलातुन फ़ऊलुन
अब अगर मैं बहर को परिभाषित करूँ तो आप कह सकते हैं कि बहर एक मीटर है, एक लय है, एक ताल है जो अरकानों या उनके ज़िहाफ़ों के साथ एक निश्चित तरक़ीब से बनती है. असंख्य बहरें बन सकती है एक समूह से.
जैसे एक समूह है:
122 122 122 122
इसके कई रूप हो सकते हैं जैसे:
122 122 122 12
122 122 122 1
122 122
122 122 1
सबसे पहली बहार है:
बहरे-मुतका़रिब:
1.मुत़कारिब (122x4) मसम्मन सालिम
(चार फ़ऊलुन )
*सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहां और भी हैं.
*कोई पास आया सवेरे-सवेरे
मुझे आज़माया सवेरे-सवेरे.
सतपाल ख्याल ग़ज़ल विधा को समर्पित हैं। आप निरंतर पत्र-पत्रिकाओं मे प्रकाशित होते रहते हैं। आप सहित्य शिल्पी पर ग़ज़ल शिल्प और संरचना स्तंभ से भी जुडे हुए हैं तथा ग़ज़ल पर केन्द्रित एक ब्लाग आज की गज़ल का संचालन भी कर रहे हैं। आपका एक ग़ज़ल संग्रह प्रकाशनाधीन है। अंतर्जाल पर भी आप सक्रिय हैं।
ये दोनों शे'र बहरे-मुतकारिब में हैं और ये बहुत मक़बूल बहर है. बहर का सालिम शक्ल में इस्तेमाल हुआ है यानि जिस शक्ल में बहर के अरकान थे उसी शक्ल मे इस्तेमाल हुए.ये मसम्मन बहर है इसमे आठ अरकान हैं एक शे'र में.तो हम इसे लिखेंगे: बहरे-मुतका़रिब मफ़रद मसम्मन सालिम.अगर बहर के अरकान सालिम या शु्द्ध शक्ल में इस्तेमाल होते हैं तो बहर सालिम होगी अगर वो असल शक्ल में इस्तेमाल न होकर अपनी मुज़ाहिफ शक्ल में इस्तेमाल हों तो बहर को मुज़ाहिफ़ कह देते हैं.सालिम मतलब जिस बहर में आठ में से कोई एक बेसिक अरकान इस्तेमाल हुआ हो. हमने पिछले लेख मे आठ बेसिक अरकान का ज़िक्र किया था जो सारी बहरों का आधार है.मुज़ाहिफ़ मतलब अरकान की बिगड़ी हुई शक्ल.जैसे फ़ाइलातुन सालिम शक्ल है और फ़ाइलुन मुज़ाहिफ़. सालिम शक्ल से मुज़ाहिफ़ शक्ल बनाने के लिए भी एक तरकीब है जिसे ज़िहाफ़ कहते हैं.तो हर बहर या तो सालिम रूप में इस्तेमाल होगी या मुज़ाहिफ़ मे, कई बहरें सालिम और मुज़ाहिफ़ दोनों रूप मे इस्तेमाल होती हैं. अरकानों से ज़िहाफ़ बनाने की तरकीब बाद में बयान करेंगे.हम हर बहर के मुज़ाहिफ़ और सालिम रूप की उदाहरणों का उनके गुरु लघू तरकीब से, अरकानों के नाम देकर समझेंगे जो मैं समझता हूँ कि आसान होगा, नहीं तो ये खेल पेचीदा हो जाएगा.
बहरे-मुतका़रिब मुज़ाहफ़ शक्लें:
1.
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊ (फ़ऊ या फ़+अल)
122 122 122 12
गया दौरे-सरमायादारी गया
तमाशा दिखा कर मदारी गया.(इक़बाल)
दिखाई दिए यूँ कि बेखुद किया
हमें आप से भी जुदा कर चले.(मीर)
(ये महज़ूफ ज़िहाफ़ का नाम है)
2:
फ़ऊल फ़ालुन x 4
121 22 x4
(सौलह रुक्नी)
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराये नैना बनाये बतियाँ
कि ताब-ए-हिज्राँ न दारम ऐ जाँ न लेहु काहे लगाये छतियाँ
हज़ार राहें जो मुड़के देखीं कहीं से कोई सदा न आई.
बड़ी वफ़ा से निभाई तूने हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई.
3:
फ़ऊल फ़ालुन x 2
121 22 x 2
वो ख़त के पुरज़े उड़ा रहा था.
हवाओं का रुख दिखा रहा था.
4:
फ़ालुन फ़ऊलुन x2
22 122 x2
नै मुहरा बाक़ी नै मुहरा बाज़ी
जीता है रूमी हारा है काज़ी (इकबाल)
5:
फ़ाइ फ़ऊलुन
21 122 x 2
सोलह रुक्नी
21 122 x4
6:
22 22 22 22
चार फ़ेलुन या आठ रुक्नी.
इस बहर में एक छूट है इसे आप इस रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं.
211 2 11 211 22
दूसरा, चौथा और छटा गुरु लघु से बदला जा सकता है.
एक मुहव्ब्त लाख खताएँ
वजह-ए-सितम कुछ हो तो बताएँ.
अपना ही दुखड़ा रोते हो
किस पर अहसान जताते हो.(ख्याल)
7:
(सोलह रुक्नी)
22 22 22 22 22 22 22 2(11)
यहाँ पर हर गुरु की जग़ह दो लघु आ सकते हैं सिवाए आठवें गुरु के.
* दूर है मंज़िल राहें मुशकिल आलम है तनहाई का
आज मुझे अहसास हुआ है अपनी शिकस्ता पाई का.(शकील)
* एक था गुल और एक थी बुलबुल दोनों चमन में रहते थे
है ये कहानी बिल्कुल सच्ची मेरे नाना कहते थे.(आनंद बख्शी)
* पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है
जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है.(मीर)
और..
एक ये प्रकार है
22 22 22 22 22 22 22
इसमे हर गुरु की जग़ह दो लघु इस्तेमाल हो सकते हैं.
8:
फ़ालुन फ़ालुन फ़ालुन फ़े.
22 22 22 2
अब इसमे छूट भी है इस को इस रूप में भी इस्तेमाल कर सकते हैं
211 211 222
* मज़हब क्या है इस दिल में
इक मस्जिद है शिवाला है
अब मुद्दे की बात करते हैं आप समझ लें कि मैं संगीतकार हूँ और आप गीतकार या ग़ज़लकार तो मैं आपको एक धुन देता हूँ जो बहरे-मुतकारिब मे है. आप उस पर ग़ज़ल कहने की कोशिश करें. इस बहर को याद रखने के लिए आप चाहे इसे :
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
(122 122 122 122)
या
छमाछम छमाछम छमाछम छमाछम
या
तपोवन तपोवन तपोवन तपोवन
कुछ भी कह लें महत्वपूर्ण है इसका वज़्न, बस...
1.बहरे- मुत़कारिब
(122x4)
(चार फ़ऊलुन )
एक बहुत ही मशहूर गीत है जो इस बहर मे है वो है.
अ+के+ले अ+के+ले क+हाँ जा र+हे हो
(1+2+2 1+2+2 1+2+2 1+2+2)
मु+झे सा+थ ले लो ज+हाँ जा र+हे हो
(1+2+2 1+ 2+2 1+2+ 2 1+2+2)
अब आप कोशिश कर सकते हैं. इसे गुनगुनाएँ और ग़ज़ल कहने की कोशिश करें।
***********
35 टिप्पणियाँ
This is a good article. Thanks.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
सतपाल जी मात्रायें गिनने की विधि पर अगले आलेख में प्रकाश डालें जिससे बहर को समझने में आसानी होगी। मेरा मतलब है उच्चारण के आधार पर गिनना और मात्राओं के आधार पर गिनना दोनों में क्या बुनियादी फर्क है और क्या जरूरी।
जवाब देंहटाएंpichhale lekh par ,,फोन आया के किसी अनाम टिपण्णी को आपकी समझा जा रहा है,, क्या वाकई आपने की है,,,??,सुना तो यकीन ही नहीं हुआ,,,,,जो जगह हम कब के छोड़ चुके हैं,,,,वहा पर यदि कोई अनाम कमेंट करे तो हमारे ही खाते में क्यों,,,,??
जवाब देंहटाएंफिर याद आया के लिखा तो हमीने था के यदि कोई बात नागवार लगी तो फिर टिप्पणी करूंगा,,,
पहले भी अनाम टिप्पणी की वजह बता चुका हूँ,,,और हटाई गई टिपण्णी को भी कबूल चुका हूँ,,,,जो के आपके लिहाज से अभद्र थी,,,,,उन्ही tipanniyon के बारे में जब और भी गुनिजनो से पूछा तो यही कहा गया के ,,,खैर छोडिये,,,,, सारी बात कह दी तो ये भी हटा दी जायेगी,,,,, हालांकि अभद्र उसमे भी कुछ नहीं है,,,,,,,,सो बात यही ख़त्म,,,
और हमारी जो छवि बनाई गई है,,,उसको तो साफ़ करने की कोशिश करना हमारा हक़ है,,,,,,अतः ये कमेंट ना हटाया जाए,,,,,
उसके बाद यहाँ कोई कमेंट नहीं,,,,,,यदि किसी को कोई बात कहनी सुन्नी होगी तो व्यक्तिगत रूप से,,,,,फिर भी यदि बेहद ही जरूरी हुआ तो अपने नाम से,,,,,अपनी शक्ल दिखा केर कमेंट करंगे,,,,,,,,,,
भविष्य में kisi भी अनाम कमेंट को हमसे ना जोड़ा जाए,,,,,हमने कभी भी कोई ऐसी बात नहीं लिखी के मुंह छुपा के कहनी पड़े,,,,,एक बार लिखी तो,,,बिना kisi के कहे खुद ही स्वीकार की,,,
आशा है आइन्दा ध्यान रखा जौएगा,,,
यदि फोन नहीं आता तो us din भी हम नहीं आने वाले थे देखने,,,,
पिछले लेख वाले अनाम जी, (अदना साहब)
आपने इतनी खूबसूरत बात कहनी थी तो अनाम होने की क्या जरूरत थी,,,,,पर मुझे लगता है के अभी पाठ की शुरुआत ही है,,,,आमद की बाते यदि आआगे चलकर हो तो अधिक उचित रहेगा,,,,,
क्यूंकि अधिकतर पातःक गन शायद भ्रम की स्थति में आ जाएँ,,,,, अतः फिलहाल बेसिक जाम्कारी ही ठीक है,,,,यद् आपको मेरी बात का उत्तर देना हो तो कृपया यहाँ न लिखें,,,मुझे मेल करें,,,मुझे आपके उत्तर की प्रतीक्षा रहेगी,,
manu2367@gmail.com
satpaal ji ,
जवाब देंहटाएंnamaskar . aapka lekh padhkar to chakit rah gaya , bhai ,gazal likhna to aisa lagta hai bahut kathin kaam hai .. mujhe to gazal likhna nahi aata , par iccha bahut hoti hai .. in lekhon se shayad kuch na kuch fayada ho jaayen..
aapko is lekh ke liye dhanyawad.
aapko dil se badhai ..
Bhai bahut kathin hai mera bhi mann tha lekin nahi likh paa raha , kaun si BAHR kis liy istemal karna hai yahi nahi malum hai.....😢😢 Bahut kathin hai
हटाएंसतपाल जी एक शंका यह भी है कि क्या दो अरकानों को अपनी सुविधा से जोडा जा सकता है? या किसी अरकान में छूट ली जा सकती है? अगर जोडा जा सकता है तो उदाहरण...और छूट ली जा सकती है तो उदाहरण।
जवाब देंहटाएंतकतीअ और बहर पर बहुत उम्दा जानकारी। मेरा प्रश्न भी वही है जो डॉ. नंदन का है।
जवाब देंहटाएंdetail mein bahar par bahutachhi jankari,samajhne ke liye aur ek baar baad mein padhne aayenge shukran
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा आलेख है, बधाई।
जवाब देंहटाएंसतपाल जी अरकार तो फिक्स्ड हैं क्या जिहाफ़ भी फिक्स्ड हैं? आपका आलेख अच्छा है।
जवाब देंहटाएंआवरद और आमद का जो सवाल आता है तो वो ऐसे है कि आमद भी आवरद से गुज़र कर सुधरती है और आमद के लिये सरस्वती की मेहर चाहिये उसके लिये कोई शास्त्र नही हैं. जब किसी मिसरे की किसी विशेष समय मे..( चाहे दुख, चाहे सुख का हो)आमद होती है तो उसे भी शायर बाद मे बहर मे बिठाता है और ख्याल की आमद होती है, लय बाद मे बनती है.कभी कभार लय भी खुद आती है लेकिन बाद मे ख्याल को अनुशासन मे बिठाना पड़ता है.
जवाब देंहटाएंइस फ़न की जड़ें भले कड़वी हों पर फ़ल बहुत मीठे होते हैं. हर विधा का अनुशासन होता है जो मानना पड़ता है.
ज़िहाफ़ भी फ़िकस किये गये हैं जैसे फ़ऊलुन (१२२) से फ़ऊ (१२) इसके भी कुछ कानून हैं जो यहाँ नही रखे जा सकते बाद मे..
जवाब देंहटाएंDear Ananya !
जवाब देंहटाएंmataraa ginne ke paksh me mai nahi hooN. Kavita vachkanvi ji ne ek baat to sahi kahi thee ke ek taraf to ho jana paRega. aap Chand me likho aur matrayeN gino lekin mai aap ko is ko follow karne ke salaah nahi de sakta.Ye baRa vibaadit mudda hai..jaise
faailatun (2122)aur mufaaiilun(1222) ki maatra baraabar hai lekin vazan alag, ye mudda yahaN discuss nahi kia ja sakta.
arkaano ko aapas me jor sakta haiN. yahi to kia gya hai baharon me.do alag arkaan(murakkab baharon) me liye jaate hain. aap apne baharen baad me banayeN pahle jo hain unme likh len to kaafi hai.
जवाब देंहटाएंसतपाल जी आपके आलेखों से गजल के बारे में बहुत कुछ जानकारी मिल रही है..आशा है हम भी कोई ऐसी गजल लिख पायेंगी जिसमें कोई दोष न निकाल पाये.. आभार
जवाब देंहटाएंमैं दिये गये अरकानों में से सुविधा के अनुसार कुछ लिख कर आपको भेजूंगी। आपको सरलता से समझाये गये आलेख के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसतपाल जी आपने एक बहुत मुश्किल काम को सरलता से समझाने की कोशिश की है लेकिन इसे समझना अभी भी इतना आसान नहीं...मेरी गुजारिश है की आप हर बहर के लिए एक आध शेर या फ़िल्मी ग़ज़लों का हवाला दें ताकि पढ़कर और गुनगुना कर उसे और अच्छी तरह से समझा जा सके आपने जहाँ जहाँ उधाहरण दिए हैं वे सभी समझ में आने वाले हैं लेकिन जहाँ नहीं दिए हैं वहीँ समझने में रूकावट आ रही है...उम्मीद है मेरी बात का बुरा नहीं मानेगे...ग़ज़ल की बारीकियों को सीखने के लिए बहुत समय और साधना चाहिए जो मेरे विचार से बिना गुरु के मुश्किल है...
जवाब देंहटाएंनीरज
neeraj ji,
जवाब देंहटाएंNext article me koshish karunga, kai baar kuch baharoN ka kam istemaal hota hai to unki example dhoondne me dikkat hotee hai. But i will try my label best.
Satpal jee,aapne ananyajee ke
जवाब देंहटाएंprashn ke uttae mein kahaa hai
ki aap maatra ginne ke paksh mein
nahin hai aur maatraaon ko follow
karne karne kee salaah nahin dete
hain.bhai,Urdu ke chhand varnik
hote hue bhee maatrik hain.kyonki
unmein ek guru ke sthaan par
2 lagu aa sakte hain.Us mein bhee
1+1=2 hote hain.Jaese "Aadmee"
shabd mein guru ,lagu aur guru hai
Urdu ke hisaab anusaar 2 1 2 hai.
lekin isko 11111 mein bhee le sakte
hain jaese-"Har bashar." Ye
maatrayen ginna nahin to aur kya
hai.
Ye kahna ki gazal maatrik
chhandon men liknaa vivaadit vishay
hai,saraasar galat baat hai.Shri
R.P.Sharma.Maharshi jee ne kaee
gazalen maatrik chhandon mein kahee
hain.Aabhaa poorva ne kaee gazalen
maatrik chhandon mein kahee hain.
"Doha" chhand mein unke do sheron
kee chhata dekhiye---
main raste mein yun khadee
liye tumhaaree aas
jaese jhoole daal se
latkaa koee pret
----------------
Ek tumhaaraa jo mile
nahin milaa hai paas
aansoo-aansoo ho gayaa
jeevan kaa itihaas
Aapne bhee to maatrik chhand
"Chaupaee" chhand mein nimn
matla kahaa hai--
Ek muhabbat laakh khtaayen
vazah-e-sitam kuchh ho to btaayen
lekin aapkaa nimn sher lay
mein bhinn hai bhale hee usmein
bhee 22222222=16 maatrayen hain--
Apna hee dukhda rote ho
kis par ahsaan jataate ho
प्राण शर्मा जी आपके आगे नतमस्तक हूँ। कुछ कुछ सुलझन हुई है। राजीव जी, सतपाल जी, महावीर जी, प्राण जी और कविता वाचक्नवी जी से मेरा अनुरोध है कि मात्रिक छंद की ग़ज़ल में उपयोगिता और विवाद पर कोई भी विद्वान एक सरल लेख उपलब्ध करायें।
जवाब देंहटाएंप्राण शर्मा जी आपके आगे नतमस्तक हूँ। कुछ कुछ सुलझन हुई है। राजीव जी, सतपाल जी, महावीर जी, प्राण जी और कविता वाचक्नवी जी से मेरा अनुरोध है कि मात्रिक छंद की ग़ज़ल में उपयोगिता और विवाद पर कोई भी विद्वान एक सरल लेख उपलब्ध करायें।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी सतपाल जी...बाकि मैं भी नीरज जी के आग्रह को दोहराऊँगा....
जवाब देंहटाएंश्रद्धेय प्राण साब ने जो विस्तृत रूप दिया है आपके आलेख को, उसे भी अपनी अगली कड़ी में जोड़ें तो हम सब के लिये बेहतर रहेगा...
आपका लाख शुक्रिया
यह आलेख शिल्पी के सुधी पाठकों की अभिरुचि गज़ल लिखने की विधा में बढाता जा रहा है यह सतपाल जी के प्रत्येक आलेख से प्रत्यक्ष है. आपके समर्पण को नमन
जवाब देंहटाएंसतपाल जी आपकी बात का मान रखते हुए जैसा कि आपने कहा है कि छन्द में मात्राएं गिनने की आप सलाह नहीं दे सकते क्योंकि यह 'विवादित' मुद्दा है, इस विषय में कुछ कहना चाहता हूं। प्राण शर्मा जी की टिप्पणी ध्यान देने योग्य है।
जवाब देंहटाएंमेरे विचार से इस में कोई विवाद की बात नहीं है। ग़ज़ल को चाहे छन्द की मात्राओं द्वारा लिखें या फिर एक हर्फ़ी, दो हर्फ़ी (सबबे-ख़फीफ) के हिसाब से लिखें, बात एक ही है। यह तो लिखने वाले की अपनी पसंद पर है। ख़लील का अरबी छन्द शास्त्र 'इल्मे अरूज़' भी पिंगल के छन्द शास्त्र से ही प्रेरित होकर अस्तित्व में आया है।
टिप्पणी में स्थानाभाव के कारण अधिक तो लिखा नहीं जा सकता लेकिन आप भी जानते हैं कि ग़ज़ल हिन्दी के छन्दों में भी लिखी जाती है जहां मात्राओं का बहुत महत्व है। कितने ही छन्दों में ग़ज़लें लिखी गई हैं जो ग़ज़ल की बहरों में समानता देखी गई है। उदाहरणार्थ, एक प्रसिद्ध प्रचलित हिंदी का छन्द है 'पीयूष वर्ष' (जिसे कुछ लोग 'पीयूष वर्षा' भी कहते हैं) जिसमें १९ मात्राएं हैं और प्राय: अंत में लघु गुरू मात्राएं होती हैं।
यह छन्द ग़ज़ल की बहर 'रमल' की मुज़ाहिफ़ की शक्ल में देख सकते हैं जिसकी अरकान है:
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन।
उदाहरण:
रामचन्द्र शुक्ल पीयूष वर्ष छन्द में रचित जो बहरे-रमल में भी है:
हाय हमने भी कुलीनो की तरह
जन्म पाया प्यार से पाले गए
जो बचे फूले फले तब क्या हुआ
कीट से भी नीचतर माने गए।
राम प्रसाद शर्मा 'महरिष' की इसी छन्द में लिखी बहरे-रमल की गज़ल का मतला:
क्यों न हम दो शब्द तरुवर पर कहें
उसको दानी कर्ण से बढ़के कहें।
प्राण शर्मा की 'पीयूष वर्ष' में लिखी बहरे-रमल की गज़ल:
नित नई नाराज़गी अच्छी नहीं
प्यार में रस्सी कशी अच्छी नहीं
स्वरचित:
ग़म से दिल की दोस्ती होने लगी
ज़िन्दगी से दिल्लगी होने लगी।
एक और उदाहरण: एक छ्न्द है 'दिग्पाल छन्द' जो इक़बाल' के 'सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा' में सही बैठती है। ज़ैदी ज़ाफर 'रज़ा' ने भी सरसी छन्द (२७ मात्राएं, १६:११) का उपयोग किया है:
तंज़ के ज़हरामेज़ नुकीले, कांटों की क्या बात
फूलों से भी हो जाते हैं, ज़ख़्मी अहसासात।
सार, विष्णुपाद, रोला, ताटंक, लावनी अनेक मात्रिक छन्द ग़ज़लों में मिल जाएंगे जैसे मुतकारिब बहर और भुजंगप्रयात, स्त्रग्विणि और बहरे-मुतदारिक, विधाता औ हज़ज आदि अनेक उदाहरण मात्रिक छन्दों और ग़ज़लों में मिल जाते हैं। पिंगल आचार्य राम प्रसाद शर्मा 'महरिष' ने इस विषय में बहुत कुछ कहा है।
सो, मेरे कहने का आशय है कि यह विवादास्पद विषय नहीं है।
आपने यह लेख इतनी मेहनत से लिखा है जिसके लिए आपको धन्यवाद देना लाज़मी है।
ek-ek karke mai prashno ke uttar doonge
जवाब देंहटाएंno.1."kyonki
unmein ek guru ke sthaan par
2 lagu aa sakte hain.Us mein bhee
1+1=2 hote hain.Jaese "Aadmee"
shabd mein guru ,lagu aur guru hai
Urdu ke hisaab anusaar 2 1 2 hai.
lekin isko 11111 mein bhee le sakte
hain jaese-"Har bashar."
dekhiye aap agar Chand me likhna chahte hain to kaun rok sakta hai , lekin yahaN jab baat urdu-baharon ki chal rahi hai to chandon ka zikr kyon?
no.2"unmein ek guru ke sthaan par
2 lagu aa sakte hain.Us mein bhee
1+1=2 hote hain"
ye jo aap do laghu milkar ek laghu ki baat kar raheN ye Flexibility hai.THIS IS NOT RULE. AGAR YE RULE HO TO :
is baharरजज़:(2212) चार मसतफ़इलुन me aur is bahar
कामिल:(11212x4) चार मुतफ़ाइलुन
me kya farq hai ye savaal Pran ji se hai.ye do lag bahreN hain. iska jawab krppya zaroor deN.
aur maine apna paksh rakha tha aur maine apne rai dii thee lekin log mujhe apne paksh me karne ke liye jut gaye.
mahavir ji ne daag ke she'r par unglii uthai thee lekin baad me usko justify nahi kia.
aap aazaad hain chand me likho chahe urdu baharon me likho.lekin dono ko mix mat karo.agar do laghu ki jagah ek guru lena RULE ban jaye to phir to
saaree baharen hi aapas me ulajh jayengi.
yahi to baharoN ki khoobsoorati hai
log karte kya hain ki ghazal kahte haiN phir jab flexibility ki baat aate hai to kahte haiN ye urdu bahar hai barabar matra girate haiN jab koi chandshastree takar jaye to kahenge ye chand me hai.
urdu baharon ko jyon ka tyon apnane me kya buraii hai, yahi na ki ye urdu ka hai , agar aisa nahi to phir chandon se comparison KYON?
chandon me likhna hai to likho WHO stops ?
ghazal ko gitika, muqtika,hazal, tevaree kahna hai to kaho. who stops you?
But you have to follow one grammer either by urdu aur farsee or by devnagrii.lekin ye baat pathar par lakir hai ki ghazal urdu-faarsee me pali baRee aur urdu ka ek maqbool style hai aur urdu koi judee bhasha nahi hai, ye bhi hiundustan me pali baree.
SACHAAII YE HAI KI HUM LOG KHEMO ME BANTE HAIN AUR HAR KOII EK PHILOSPHY SE JURA HAI USE WAHI PHILOSPHY PASAND AATEE HAI DUSREE PHILOSPHY FOLLOW KARNE WALON SE JHAGRA BAREE BAAT NAHI.HAR KOI APNE SACH KO SACH SAABIT KARNE KE LIYE LOGIC LIYE KHARA HAI, EXAMPLES LIYE KHARA HAI JAISE MAHAVIR JI NE ITNEE EXAMPLE DEE HAIN TO YE SAB ALAG-ALAG DHARAON SE JURE LOG HAIN.
BAS YAHI KAH KE MAI IS MANCH SE VIDA LETA HOON, KOI BHOOL HO TO MUAFI CHAHTA HOON.
Satpal jee,ab aap vishay ko mod
जवाब देंहटाएंmat dijiye.Apnee baat par adig
rahiye.Baat paidaa huee thee jab
aapne kahaa ki maatrik chandon mein
gazal kahnaa vivaadit vishay hai
aur aap unmein gazal kahne kee
salaah nahin dete hain.
Urdu arooz ho yaa Hindi chhand
ho naap-taul dono mein hee hai.
Urdu ke arkaan kee tarah Hindi
mein bhee gan hain-MAGAN-SSS,
NAGAN-111,BHAGAN-SII,YAGAN-ISS,
JAGAN-1S1,SAGAN-ISS,TAGAN-SS1,
RAGAN-S1S.Chhand do tarah ke hote
hain-vaidik aur lokik.Vaidik
chhandon kaa sambandh Ved se hai.
lokik chhand bhee do tarah ke hote
hain--maatrik aur varnik.Varnik
chhandon kaa paalan karnaa badaa
kathin hai.Laghu ke neeche laghu
aur guru ke neeche guru hee aanaa
chaahiye.Urdu kee tarah matrik
chhandon mein chhoot hai.In mein
ek guru ke sthaan do laghu aa
sakte hain aur do laghuon ke sthaan
par ek laghu aa sakta hai
Aapka kathan ki maatrik chhandon mein gazal kahna
vivaad kaa vishay hai,tark sangat
nahin hai.Chaupaaee--22 22 22 22,
Piyoosh Varsh--21 22 2 122 212,
Digpaal--22 12 2 22 2212 122,
Geetika--212 221 212 212 112 12,
Saar---22 22 22 22 22 22 22 ,
Sumeru -1222 1222 122 aadi kaee
Hindi ke maatrik chhand hain jo
Urdu Arooz ke bahut sameep hain
aur in maatik chhandon mein Urdu
gazalen kahee gayee hain.Ye kahnaa
uchit nahin ki maatrik chhandon
mein gazal kahnaa vivaad kaa vishay
hai.
Are bhai,Hindi kavya mein Nirala,Roop narayan pandey
Bhagvati charan Verma ,Gopal Singh
Nepali ,Ramavtar Tyagi,Gopal Das
Neeraj,Kunwar Bechain ityadi ne
Urdu bahron ke taal-mel se kaee
chhandon kaa naveeneekaran kiyaa
hai.Nirala jee kee baat hee kyaa thee.Aese chhand rache jo navyug kee bhabhivyanjnaa ke liye bahut
hee smarth hain."parimal kee nivedan sheershak kavita kee pankti
"Ek din tham jaayegaa rodan tumhaare prem-anchal mein"unke aese hee prayas kaa phal hai ye chhand Hindi ke 28 maatra ke Vidhata chhand aur Urdu kee bahar
"mfaeelun mfaeelun mfaeelun mfaeelun ke saamya banaayaa gayaa hai.Pahle shabd "Ek" ke"ae" do maatrayen alag se jod dene se
dekhiye chhand kee kitnee gambheerta badh gayee hai!
Hamaare kavi aur shayar bahron
aur chhandon mein saamytaa laane
kaa prayaas kar rahe hain aur aap
kahte hain ki ye vivaad kaa vishay
hai.kitne hee shayar "Doha"
mein gazalen kah rahe hain aur
aap kahte hain ki aap maatrik chandon
mein gazal kahne kee salaah nahin
denge.
Agar Urdu aur Hindi gazal
do sagee bahne hain to Urdu arooz
aur Hindi chhand bhee do sagee
bahne hain.
श्रीमान,
जवाब देंहटाएंसाहित्य-शिल्पी में ग़ज़ल के प्रथम पाठ अध्ययन का कर रहा था कई दिनों से। इसे समझने में कठिनाई तो आ रही थी लेकिन आज सोचा की एक बार आपसे पूछूं की मेरा तरीका सही तो है...
मैंने दो ग़ज़ल को बार-बार सुना और उसके बाद वज़्न करने की कोशिश की है...कृपया इसे जाँच लें---
शाम से आँख में नमी सी है,
2+1 +2, 2+1 +2,1+2 +2 +2
आज फ़िर आपकी कमी सी है।
2+1 +2, 2+1+2, 1+2 +2 +2
(फाइलुन फाइलुन मुफ़ाइलुन)
होशवालों को ख़बर क्या बेखुदी क्या चीज है,
2+1+2+2, 2 + 1+2 +2, 2+1+2+2, 2+1 +2
इश्क कीजे फ़िर समझिये जिंदगी क्या चीज है।
2+1 +2+2, 2 +1+2+2, 2+1+2 +2, 2+1+2.
फाइलातुन फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन
क्या मैंने सही गिनती की है? मुझे हमेशा शक रहता है कि सही हूँ या ग़लत...
===>>मैंने यह प्रश्न मेल से किया था, किन्तु कोई उत्तर न पाकर हतोत्साहित हुआ...पुनः यहाँ लिख रहा हूँ, श्री सतपाल जी या कोई जानकार इसका जवाब देंगे इसकी आशा है..
सतपाल सर,
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पर तो आते नहीं है...एक शंका है... वक्त और वक़्त के वजन में अंतर है क्या...
मैंने पढ़ा था की क्त क्ष,त्र, और ज्ञ की तरह स्वतंत्र संयुक्त अक्षर है... तब तो वक्त (१२) और वक़्त (२१) होगा...और अक्षर (१२१) होगा ना...
कृपया शंका का समाधान करें...
इन तमाम सवालों को देख कर तो यही लगता है कि सतपाल साहब को जवाब देने का ख़याल ही न आया!😕
जवाब देंहटाएंइन तमाम सवालों को देख कर तो यही लगता है कि सतपाल साहब को जवाब देने का ख़याल ही न आया!😕
जवाब देंहटाएंलेख लिख कर छोड़ देना समझदारी नहीं है, पाठक की शंकाओं पर भी ध्यान देना चाहिए
जवाब देंहटाएंMy dear frends ,this article is written long ago and I was not aware about queries ,,you can drop your message to me on fb.
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
जवाब देंहटाएंपिछले कुछ समय के कोरोना काल में मैंने कुछ ग़ज़लें लिखने की कोशिश की है, लेकिन इन ग़ज़ल लिखने का सही तरीक़ा मुझे नहीं मालूम.
क्या कोई आप ऐसे ग़ज़लकार से संपर्क करा सकते हैं, जो मेरी कुछ ग़ज़लें में बहर और मीटर में सामंजस्य बैठा सके.
मेरी ये सहायता करने के लिए उचित और मानदेय देना मुनासिब समझता हूँ.
धन्यवाद !
9820151415
Ravindra
बहुत खुब , लाजवाब
जवाब देंहटाएंमैं काफी दिनों से इन सब के बारे में यू-टयूब से जानकारी ले रही थी ।
आज आप को पढ़ा तो सारी समस्याएं दूर हो गई।
आपका स्नेह और प्रस्तुतियों पर आपकी समालोचनात्मक टिप्पणियाँ हमें बेहतर कार्य करने की प्रेरणा प्रदान करती हैं.