
यद्यपि किसी काव्य-कृति को पढ़ना अपने आप में आनंददायक होता है, पर यह आनंद तब और भी बढ़ जाता है जब उस रचना को किसी के प्रभावशाली स्वर में सुनने का मौका मिले। इसी को ध्यान में रखते हुये हमने साहित्य शिल्पी पर रचना-पाठ सुनवाने के सिलसिले का आरंभ किया था।
अपनी आवाज़ से पहचाने जाने वाले श्री हरीश भीमानी के स्वर में इससे पहले भी हम देवमणि पांडेय की एक नज़्म "हर आँगन में दीप खुशी का" प्रस्तुत कर चुके हैं। इसी क्रम मे आइये आज सुनते हैं, साहित्य शिल्पी पर पूर्व-प्रकाशित गज़ल "लोग तो कुछ भी कहते हैं" :
7 टिप्पणियाँ
बढिया लगा.
जवाब देंहटाएंअच्छी ग़ज़ल और हरीष जी की आवाज में - सोने पर सुहागा।
जवाब देंहटाएंThanks. Golden Vice.
जवाब देंहटाएंAlok Kataria
हरीष भिमानी की आवाज जादू है। अच्छा लगा।
जवाब देंहटाएंआज भी भिमानी की आवाज का सानी नहीं। पाण्डेय जी अच्छी गज़ल है।
जवाब देंहटाएंहरीश जी धन्यवाद इस सुन्दर रचना को इतनी उँचायी प्रदान करने के लिये। आपकी आवाज में अन्य रचनाओं की भी प्रतीक्षा रहेगी।
जवाब देंहटाएंGreat work
जवाब देंहटाएंRaksha Bandhan Wishes for sister
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